महाराष्ट्र
अजंता की शैली ने भारत में और अन्यत्र, काफी गहरा प्रभाव डाला है, विशेषकर, जावा में। भारतीय इतिहास के दो महत्वपूर्ण अवसरों के अनुरूप अपने स्मारकों के दो समूहों सहित, अजंता गुफाओं की स्थापत्य कला भारतीय कला के विकास के साथ-साथ गुप्त शासकों और उनके तत्काल उत्तराधिकारियों के भारत में बौद्ध समुदाय, बौद्धिक और धार्मिक प्रकोष्ठों, विद्यालयों और स्वागत केन्द्रों की भूमिका निर्धारण का असाधारण साक्ष्य रहा है।
ये गुफाएं औरंगाबाद से 104 किमी दूर और जलगांव रेलवे स्टेशन से 52 किमी दूर, एलोरा से 100 किमी दूर पूर्वोत्तर में स्थित हैं। ये गुफाएं सहयाद्री पहाडि़यों के जंगल की घाटी में दक्कन के ज्वालामुखी लावा को काट कर निर्मित की गई हैं और सुंदर वृक्षीय वातावरण में स्थित हैं। इन विशाल गुफाओं में नक्काशी की गई है जो बुद्ध के जीवन काल को दर्शाती हैं, तथा इनकी नक्काशी और मूर्तियों को भारतीय शास्त्रीय कला का आरंभ माना जाता है।
लगभग 200 वर्ष ईसा पूर्व से आरंभ करते हुए 29 गुफाओं की खुदाई की गई, किंतु 650 ईसवी में एलोरा को दृष्टिगत रखते हुए इनकी खुदाई रोक दी गई। इनमें से 5 गुफाएं मंदिर थीं और 24 गुफाएं बौद्ध मठ थीं और ऐसा कहा जाता है कि इनमें 200 भिक्षु और कारीगर रहते थे। धीरे-धीरे अजंता गुफाओं को भुला दिया गया, किंतु सन 1819 में एक ब्रिटिश बाघ-शिकारी दल ने उनकी ‘पुन: खोज’ की।