महान चोला मंदिर

महान प्राणवान चोल मंदिर

महान प्राणवान चोल मंदिर

तमिलनाडु

दक्षिणी भारत का महान चोल मन्दिर, दक्षिणी भारत में चोल साम्राज्‍य और तमिल सभ्‍यता की वास्तुकला और विचारधारा के विकास का अनोखा साक्ष्य है। यह द्रविड़ शैली के मंदिर (जिसकी विशेषता पिरामिड टॉवर के रूप में है) की वास्तुकला अवधारणा के शुद्धरूप की उत्कृष्ट रचनात्मक उपलब्धि का प्रतिनिधित्‍व करता है।

चोल, प्राचीन द्रविड़ संस्‍कृति की जन्‍म स्‍थली तमिलनाडु, तमिल देश के द्वितीय महान ऐतिहासिक राज-वंश के, जिनका प्रभाव पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में काफी महत्वपूर्ण था। तंजौर के महान मंदिर का निर्माण 1003 से 1010 तक के कुछ वर्षों में चोल साम्राज्य जो श्रीलंका और मालद्वी एवं लक्षद्वीप द्वीपसमूह के हिस्से के रूप में पूरे दक्षिणी भारत में फैला था, का वास्‍तविक संस्थापक महान सम्राट राजराजा (985-1014) के शासन काल के दौरान हुआ था। शिलालेखों और अभिलेखों के अनुसार सम्राट द्वारा निर्मित मंदिर उनके नाम से भी जाना जाता है। कभी-कभी इसे राजराजेश्वरम कहा जाता है। वहां कई सौ पुजारियों, 400 देवदासी (पवित्र नर्तकियां) और 57 संगीतकार, स्थायी कर्मचारी के रूप में थे। चोल काल के दौरान बृहदीश्वर को अर्पित सोना, चांदी और जवाहरात से प्राप्‍त आय का यथार्थ मूल्यांकन किया गया है। इन विशाल संसाधनों का न केवल इमारतों की मरम्मत और सुधार के लिए (जो 17वीं सदी तक जारी रखा गया था) बल्कि यथार्थ निवेश किए जाने के लिए दक्षतापूर्वक प्रबंधन और प्रावधान के लिए किया गया था। मंदिर जहाज मालिकों, गांव की सभाओं और शिल्पक मंडलियों को ब्याज, जो कभी-कभी 30 प्रतिशत तक पहुंच जाता था की दर पर ऋण देते थे। शिव को समर्पित बृहदीश्वर, ऐतिहासिक शहर के दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित है। 270 मी. से 140 मी. की मुख्य आयताकार दीवार इसकी बाहरी सीमा है।

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