महाबलीपुरम में स्मारकों के समूह

महाबलीपुरम में स्‍मारकों का समूह

महाबलीपुरम में स्‍मारकों का समूह

तमिलनाडु

महाबलीपुरम, दक्षिण-पूर्व भारत की पल्लव सभ्यता का उत्कृष्ट साक्ष्य है। यह मंदिर शिव पंथ के मुख्य केन्द्रों में एक है। इसके रथ (रथ के रूप में मंदिर), मण्डप (गुफा मंदिर) खुली हवा में विशाल आराम स्थल शिव संस्कृति के प्रमुख केन्द्रों में से एक है। महाबलीपुरम की मूर्तियों का प्रभाव, विशेष रूप से उनके प्रतिरूपण की कोमलता और सुनम्‍यता की बदौलत व्‍यापक है (कंबोडिया, अन्नाम, जावा)।

7वीं शताब्दी में दक्षिण मद्रास के पल्लव सम्राटों द्वारा स्थापित महाबलीपुरम पत्‍तन पर दक्षिण पूर्ण एशिया के दूरस्‍थ के साम्राज्यों : कम्बुजा (कंबोडिया) और श्रीविजय (मलेशिया, सुमात्रा, जावा) और चंपा साम्राज्य (अन्ना‍म) के साथ व्‍यापार होता था लेकिन एक पत्‍तन के रूप में इसकी भूमिका की प्रसिद्धि महाबलीपुरम में 630 और 728 ई. के बीच निर्मित और सुसज्जित पत्थर के अभ्यारण्यों और ब्राह्मण मंदिरों के रूप में हो गयी।

पत्थरों को काटकर बनाए गए रथ, अर्जुन की तपस्या (जैसे खुले चट्टानों में उकेरे दृश्‍य) गोवर्धनधारी और महिषासुरमर्दिनी की गुफाएं, और जल-शयन पेरूमल मंदिर (तटीय मंदिर परिसर के पिछले भाग में शयन करने वाले महाविष्णु और चक्रिन) अधिकांश स्मारक नरसिंह वर्मन मामल्ला की अवधि की विशेषता है।

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