अभिलेखागार

इतिहास

भारतीय राष्‍ट्रीय अभिलेखागार की उत्‍पत्‍ति के शुरुआती तत्‍वों को 1860 के समय से देखा जा सकता है जब सिविल ऑडिटर सैडमैन ने अपनी रिपोर्ट में ठसाठस भरे कार्यालयों में जगह बनाने की आवश्‍यकता पर बल दिया। इसके लिए उन्‍होंने दैनिक प्रकृति के कागजातों को नष्‍ट करने तथा सभी महत्‍वपूर्ण रिकॉर्ड को 'वृहत केन्‍द्रीय अभिलेखागार' में स्‍थानान्‍तरित करने की बात की। तथापि, सन 1889 में प्रोफेसर जी.डब्‍ल्‍यू. फॉरेस्‍ट, एलफिनस्‍टोन कॉलेज, बोम्‍बे को भारत सरकार के विदेश विभाग के रिकॅार्ड्स की जांच करने का उत्‍तरदायित्‍व सौंपने से पहले तक इस विषय पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई थी। इससे पहले बॉम्‍बे रिकॅार्ड ऑफिस में अपने कार्यों के लिए उन्‍होंने एक अभिलेखागारविद के रूप में ख्‍याति अर्जित की थी। अपनी रिपोर्ट में उन्‍होंने ईस्‍ट इंडिया कंपनी के प्रशासन संबंधी सभी रिकॉर्डों को एक केन्‍द्रीय भंडार घर में स्‍थानांतरित करने की ठोस दलीलें दीं। इसके परिणामस्‍वरूप, 11 मार्च 1891 में इम्‍पीरियल रिकॉर्ड्स डिपार्टमेंट (आईआरडी) अस्‍तित्‍व में आया जो इम्‍पीरियल सचिवालय भवन, कलकत्‍ता (कोलकाता) में स्‍थित था। प्रोफेसर जी.डब्‍ल्‍यू फॉरेस्‍ट को इसका प्रभारी अधिकारी बनाया गया। उनका मुख्‍य कार्य सभी विभागों के रिकॉर्ड की जांच, स्‍थानान्‍तरण, व्‍यवस्‍था और सूचीबद्ध करना तथा विभिन्‍न विभागीय पुस्‍तकालयों के स्‍थान पर एक केन्‍द्रीय पुस्‍तकालय की व्‍यवस्‍था करना था। जी.डब्‍ल्‍यू. के पश्‍चात, इम्‍पीरियल रिकॉर्ड्स डिपार्टमेंट (आईआरडी) का कार्य एस.सी.हिल (1900), सी.आर.विल्‍सन (1902), एन.एल. हालवर्ड (1904), ई. डेनीसन रोज़ (1905), ए.एफ.स्‍कॉलफील्‍ड (1915), आर.ए.ब्‍लाकेर (1919), जे.एम.मित्रा (1920) और राय बहादुर ए.एफ.एम. अब्‍दुल अली (1922-1938) के कार्यकाल में अच्‍छी तरह से आगे बढ़ा ये लोग अपने आप में विद्वान के साथ-साथ रिकॉर्ड कीपर भी थे।

सन 1911 में राष्‍ट्रीय राजधानी के कलकत्‍ता (कोलकाता) से नई दिल्‍ली स्‍थानांतरित होने के पश्‍चात, इम्‍पीरियल रिकॉर्ड्स डिपार्टमेंट (आईआरडी) को सन 1926 में इसके वर्तमान भवन में स्‍थानांतरित किया गया। स्‍वतंत्रता के बाद, आईआरडी को भारतीय राष्‍ट्रीय अभिलेखागार के रूप में नया नाम दिया गया और संगठन के प्रमुख के पद को कीपर ऑफ रिकॉर्ड्स से बदल कर अभिलेखागार निदेशक का नाम दिया गया। ए.एफ.एम.अब्‍दुल अली के बाद डा. एस.एन.सेन ने 1949 तक इस कार्यालय का पदभार संभाला और इन्‍होंने इम्‍पीरियल रिकॉर्ड्स डिपार्टमेंट/भारतीय राष्‍ट्रीय अभिलेखागार के कार्यकलापों को समग्र रूप से दिशा प्रदान की ।.

सन् 1939 में ऐसा पहली बार हुआ जब सदाशयी शोध कार्य के लिए अभिलेखों को उपलब्‍ध कराया गया और 1947 तक 1902 से पहले के सभी रिकॉड परामर्श करने के लिए उपलब्‍ध हो गए थे। सन 1940 में एक संरक्षण अनुसंधान प्रयोगशाला (सीआरएल) की स्‍थापना की गई जिसका उद्देश्‍य संरक्षण से संबंधित समस्‍याओं से जुड़े शोध कार्य करना था जोकि डा. सेन का दूरदर्शी योगदान था। अभिलेखागार के रख-रखाव का प्रशिक्षण 1941 में शुरू किया गया और भारतीय ऐतिहासिक अभिलेख आयोग द्वारा भारत में अभिलेखागार कार्यालय के युद्धोपरांत पुनसंचालन की एक स्‍कीम तैयार की गई थी। वर्ष 1947 में भारतीय अभिलेखागार नामक विभागीय जर्नल अस्तित्‍व में आया जिसमें आधुनिक भारतीय इतिहास, दस्‍तावेजों के संरक्षण, अभिलेख प्रबंधन, रेप्रोग्राफिक्‍स, अभिलेखीय जागरूकता तथा कार्यात्‍मक अभिलेखागारों से जुड़े अन्‍य सभी पहलुओं की स्रोत सामग्री होती है।

अत:, भारतीय राष्‍ट्रीय अभिलेखागार स्‍वतंत्रताके पश्‍चात प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ ताकि सम्‍पूर्ण देश के अभिलेखीय क्षेत्र में अधिक गत्‍यात्‍मक और प्रेरक भूमिका निभा सके। इसने तब से राष्‍ट्रीय और अन्‍तरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर सार्वजनिक अभिलेखों के अभिग्रहण निजी पत्रों/संग्रहों तथा पुस्‍तकालय सामग्रियों के प्रापण, अभिलेख प्रबंधन, शोध एवं संदर्भ, प्रकाशन, प्रशिक्षण, संरक्षण, रेप्रोग्राफी, आउटरीच कार्यक्रम, समन्‍वयन के क्षेत्रों में अपने कार्यकलापों में कई गुना विस्‍तार और क्षेत्रीय भागों में कार्यालय के विस्‍तार को देखा है। इस विभाग ने जून 1990 में अपने दर्जे में आगे और बल मिलने को देखा जब निदेशक, अभिलेखागार के कार्यालय को पुन: पदनामित करते हुए महानिदेशक, अभिलेखागार कर दिया गया। वर्तमान में भारतीय राष्‍ट्रीय अभिलेखागार, संस्‍कृति मंत्रालय का एक सम्‍बद्ध कार्यालय है और भोपाल में इसका क्षेत्रीय कार्यालय है तथा जयपुर, पुद्दुचेरी और भुवनेश्‍वर में इसके अभिलेख केन्‍द्र हैं।

परिरक्षण

  • राष्‍ट्रीय अभिलेखागार सुरक्षात्‍मक, सुधारात्‍मक और पुनर्स्‍थापना संबंधी प्रक्रियाओं के माध्‍यम से ईमानदारी से प्रयास कर रहा है। ताकि इसकी अभिरक्षामें रखे दस्‍तावेजों की लम्‍बी आयु को सुनिश्चित किया जा सके ।
  • विभाग के पास एक संरक्षण अनुसंधान प्रयोगशाला भी है जिसे 1941 में स्‍थापित किया गया था। इसकी शुरूआत से ही ये पुनर्स्‍थापन के लिए स्‍वदेशी तकनीकों को विकास करने, पुनर्स्‍थापन और संग्रहण के लिए आवश्‍यक सामग्रियों के परीक्षण जैसे अनुसंधान और विकास संबंधी कार्यों में कार्यरत है ।
  • यह प्रयोगशाला टेंसाइल टेस्‍टर, फोल्डिंग एंड्योरेंस टेस्‍टर और ब्रस्टिंग एंड्योरेंस टेस्‍टर जैसी कागज परीक्षण मशीनों से सुसज्जित है जिससे कि परिरक्षणात्‍मक सामग्री के विभिन्‍न किस्‍मों के परीक्षण में सुविधा हो सके।
  • विभाग द्वारा सेल्‍यूलोज़ ऐकेलेट फॉयल तथा टिश्‍यू पेपर की मदद से दस्‍तावेजों की मरम्‍मत और पुनर्नवीकृत करने की एक अनोखी प्रक्रिया विकसित की गई है जिसे विश्‍व भर में सोल्‍वेंट अथवा हैंड लैमिनेशन प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है।
  • अधिक पुराना होने तथा लचीलापन समाप्‍त होने के कारण सूख और तड़क जाने वाले ताम्र पत्रों को प्रयोगशाला पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया को तैयार करने में यह सफल रही है।
  • पोर्टेबल थर्मोस्‍टेटीकली कंट्रोलर एयरटाइट वॉल्‍ट को तैयार करना एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण उपलब्धि रही है जो एक बहुकार्यात्‍मक चैम्‍बर है और जिसे स्‍टरलाइजेशनदस्‍तावेजो पुस्‍तकों तथा अन्‍य सामाग्रियों के वैपर फेज़ डि-एसिडिफिकेशन तथा इन्‍हें सुखाने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।

प्रतिलिपिकरण

  • राष्‍ट्रीय अभिलेखागार भी इसकी अभिरक्षा में रखे दस्‍तावेजों की लम्‍बी आयु सुनिश्चिम करने का प्रयास करने के लिए इलेबोरेट माइक्रोफिल्मिंग कार्यक्रम का उपयोग कर रहा है जिसे इसके द्वारा विगत 3 दशकों से व्‍यवहार में लाया जा रहा है।
  • माइक्रोफिल्मिंग को उपयोग अथवा प्राकृतिक तौर पर पुराना पड़ने और स्‍याही हल्‍का होने से होने वाली खस्‍ता हालत के विरूद्ध रिकॉर्डों के परिरक्षण हेतु एक उपाय के रूप में उपयोग किया जा रहा है।
  • प्रतिलिपिकरणप्रभाग आधुनिक मशीनों से सुसज्जित है। यह अपने सामान्‍य कार्यकलाप के अलावा न केवल अध्‍येताओ की आवश्‍यकताओं को पूरा करता है बल्कि आग बाढ़, युद्ध और तोड-फोड़ के खिलाफ एक सुरक्षात्‍मक उपाय के रूप में मूल्‍यवान अभिलेखों की सुरक्षा माइक्रोफिल्‍म तैयार करने के भारी-भरकम कार्य में भी लगा हुआ है।
  • माइक्रोफिल्‍म रोल्‍स की नेगेटिव कोपिज़ के इसके सेट भोपाल के क्षेत्रीय कार्यालय में रखे जा रहे हैं।यह प्रभाग एनालॉग माइक्रोफिल्‍म चित्रों को डिजीटल चित्रों में भी परिवर्तित कर रहा है ताकि इन्‍हें विशेष रूप से तैयार अभिलेखीय सूचना प्रबंधन प्रणाली साफ्टवेयर से जोड़ाजा सके।
  • रेपोग्राफी विंग में एक सचल माइक्रोफिल्मिंग यूनिट भी है जो ऐसे दस्‍तावेजों की माइक्रोफिल्‍म बनाने के लिए देश के विभिन्‍न भागों में भ्रमण करती है जिन्‍हें राष्‍ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्‍ली अथवा भोपाल, जयपुर, पुद्दुचेरी और भुवनेश्‍वर में इसके क्षेत्रीय कार्यालाय / रिकॉर्ड सेंटर में नहीं लाया जा सकता हो।

अधिक जानकरी के लिए कृपया www.nationalarchives.nic.inExternal Link देखें

  • National Culture Fund
  • http://india.gov.in/
  • http://www.incredibleindia.org/
  • http://ngo.india.gov.in/
  • http://nmi.nic.in/
  • https://mygov.in