‘’लोक कला’’ संबंधी कल्पना और शब्द की व्यापक सहमति और अर्थ हैं, जिसमें प्राकृतिक से लेकर मौलिक, पारंपरिक से लेकर ग्रामीण तथा कुछ मामलों में यह हृदय से शामिल है। मौलिक अथवा पारंपरिक व्यक्तियों की हृदय से उदगार कालांतर में लोक-साहित्य का रूप धारण कर लेती है।
सभी लोक-साहित्य मौखिक परंपराएं होती हैं, लोक-साहित्य, पारंपरिक ज्ञान और संस्कृति के प्रति आस्था प्राय: लिखित भाषा के रूप में नहीं होती है और वे सामान्यत: मुख से अभिव्यक्त शब्द के माध्यम से प्रसारित होती रहती हैं। लिखित साहित्य की भाति इनमें मिथक, नाटक और रीति रिवाजों आदि के अलावा पद्य और गद्य वर्णन दोनों शामिल होते हैं। सभी संस्कृतियों की अपनी लोक कथाएं होती हैं। इसके विपरीत और पारंपरिक रूप से, साहित्य शब्द का तात्पर्य किसी लिखित कार्य से होता है।
सभी लोक-साहित्य लोगों के आस-पास प्रकृति के विषय में मूल निवासियों के हृदय उदगार व्यक्त करने के अलावा और अधिक चीजों को चित्रित करती हैं। ये प्राय: संस्कृति, सामाजिक परंपराओं, रीतिरिवाजों और व्यवहार के रूपों का सदैव संवाहक होती हैं- इसका तात्पर्य समाज और संक्षेप में जीवन से होता है। लोक-साहित्यों में प्राचीन काल के उत्कृष्ट विचार और सर्वोच्च आध्यात्मिक सत्य शामिल होते हैं जो आमतौर पर सामान्य व्यक्ति की समझ से परे होती है और ये जटिल कथा रूपों में होती हैं।
साहित्य लिखित रूप में लोक-साहित्य और मौखिक परंपराओं के संरक्षण में सहायता प्रदान करता है। परंतु इस रूप में साहित्य से लगभग सभी लोक और मौखिक परंपराएं इस दुनिया से समाप्त हो गयी होती। लिखित पुस्तकें लोक-साहित्य के अभिलेख के रूप में मौखिक परंपराएं जहां यह प्राय: अंतरण में लुप्त हो जाती हैं के मुकाबले अल्प अथवा बिना किसी परिवर्तन के साथ भावी पीढी को उत्कृष्ट विचारों को अंतरित करने में सहायता प्रदान करती है। साहित्य वर्तमान पीढी को अतीत की उन कहानियों की प्रासंगिकता का चित्रण भी प्रस्तुत कर सकता है, जिसे मौखिक परंपराएं काफी दृढता के साथ नहीं कर सकती।
भारतीय साहित्य ने, विश्व में किसी अन्य साहित्य की तुलना में मौखिक परंपराओं और लोक-साहित्य के संरक्षण और प्रचार – प्रसार में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। भारत, काफी प्राचीन काल से ही सभी कला रूपों अर्थात लोक कला का स्वामी रहा है। इस क्रम में सामवेद का वर्णन किया जा सकता है जो संभवत: लोक संगीत का प्राचीन रूप है और यह अब तक अस्तित्व में है। यदि कोई सामवेद को एक पुराने लोक संगीत के रूप में देखता है, तो भी यह अब तक विश्व की बेहतरीन और प्राचीन लोक संगीत में शामिल है।
भारत के महाकाव्यों से लेकर, रामायण और महाभारत से बौद्ध धर्म की जातक कथाओं से लेकर पंचतंत्र तक और हितोपदेश से लेकर मध्यकालीन अवधि के कथा सरितासंग्रहण और बंगाल के बोल्स के आध्यात्मिक गीतों से लेकर भारत की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं की अनेक कृतियों को कहानी के रूप में लेखबद्ध करते हुए विद्वानों, संतों और लेखकों ने मौखिक परंपराओं और लोक-साहित्यको जीवंत रखा है।
लोक-साहित्य को संरक्षित करने में इन सदियों में सबसे अनोखी बात इस संबंध में महिलाओं द्वारा निभाई गई भूमिका शामिल है। अतीत की गार्गी और मैत्री द्वारा निभाई गई भूमिकाओं से लेकर विगत हजार सालों के प्रारंभ में तमिलनाडु की अंडाल से लेकर कश्मीर की ललेश्वरी से लेकर आंध्र प्रदेश में नेल्लोर की मोल्ला से लेकर कर्नाटक की अक्कामहादेवी से लेकर सहजोबाई की भूमिका प्रशंसनीय है।
भारत, लोक कथाओं के संबंध में विश्व की एक समृद्ध स्रोतों में से एक रहा है। ना केवल लोक कथाएं बल्कि मौखिक परंपराओं के सभी रूप अर्थात नीतिवचन, कहावतें, अफवाह, गीत और तात्कालिक लोक नुक्कड नाटक उस देश की संस्कृति और मूल्यों के दर्पण होते हैं, जिस देश में ये घटित होते हैं। ये किसी निश्चित स्थान में भी व्यापक रूप से भिन्न – भिन्न रीति रिवाजों और प्रथाओं को एक सूत्र में बांधने में भी सहायता प्रदान करती हैं। भारत ही ऐसा देश है जहां सबसे अनपढ़ किसान की बोली भी उत्कृष्ट विचारों और उपमाओं से परिपूर्ण होती है। क्षेत्र की अनेक कहानियां और अनेक गीतों और नीति वचनों और कहावतों से युक्त नाटकों को संरक्षित और अपनाते हुए, भारतीय साहित्य अदृश्य रूप से विशाल संस्कृतियों को एक साथ जोडने में एक व्यापक भूमिका निभाई है। भारत जैसी इस विशाल देश में सांस्कृतिक एकता और पहचान कायम रखने और इसे प्रोत्साहित करने में भारतीय साहित्य की भूमिका को कम नहीं किया जा सकता है।
भारतीय लोक साहित्य, विश्व के अन्य भागों, जहां ये कला रूप तीव्र औद्योगिकीकरण और वैश्विकरण के अनुरूप तेजी से विलुप्त हो रहे हैं, के लिए एक मजबूत और स्पष्ट संदेश देता है। लोक साहित्य और लोक कला रूप संस्कृति अथवा दार्शनिक काव्यों के न केवल संवाहक होते हैं, परंतु ये अर्जित ठोस आत्म चिंतन और गहन विचारों को भावाभिव्यक्ति होते हैं। परंपराओं में सादा जीवन, आत्म चिंतन, सत्य मार्ग पर चलना शामिल है। पुन: उल्लेख किया जाता है कि लोक परंपराएं, वर्तमान की वास्तविकता से अप्रासंगिक उच्च नैतिक आधार को धारण करने संबंधी केवल मंच नहीं हैं। चाकियारकुत्थू और वीथि नाटकम जैसे अनेक लोक नाटकों का वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक वास्तविकता के परिप्रेक्ष्य में व्यंग्य नाटकों और टीका टिप्पणियों के रूप में आज भी उपयोग किया जाता है । यह भारतीय साहित्य के व्यापक पृष्ठों के संबंध में अनेक लोक गीतों हेतु भी सत्य है।
यह भी सच है कि जब लिखित रूप में इन्हें अभिलेखित और प्रचारित किया जाता है तो ये लोक साहित्य जनता में भी लोकप्रिय होते जाते हैं। अन्यथा यह सीमित स्थान तक सीमित रह जाते हैं और इनकी पहुंच छोटे समूहों और समुदायों तक ही रह जाती है। विश्व सदी की मध्य कालीन भारतीय साहित्य के माध्यम से हम लोकप्रिय अवधारणा की तुलना में मौखिक परंपराओं के लिए भारतीय साहित्य की वास्तविकता को देखते हैं जहां यह यूरोपीय संस्कृति और अन्य के संबंध में अधिक यर्थाथ है जहां, उनकी लोक साहित्य लगभग समाप्त हो चुकी है। इस तथ्य संबंधी नवीनतम उदाहरण हम प्रसिद्ध राजस्थानी लोक कथा वाचक, श्री विजय दान देथा के प्रयास में देख सकते हैं।
आधुनिक लोकतांत्रिक भारत में लोक साहित्य का, अनेक अन्य देशों के विपरीत शिक्षा क्षेत्र के अंदर और बाहर दोनों ही स्थान पर अनुसरण किया जाता है। इस सामूहिक प्रयत्न के भाग के रूप में साहित्य अकादमी और अन्य सदृश संगठनों के प्रयास शामिल हैं, ताकि भारतीय लोक साहित्य का संरक्षण और प्रसार किया जा सके।
साहित्य के क्षेत्र में भारत का प्रमुख संस्थान, साहित्य अकादमी इसके द्वारा मान्यता प्राप्त सभी 24 भाषाओं में भारतीय साहित्य के संरक्षण और संवर्धन के प्रति समर्पित है। भारत में सांस्कृतिक एकता संवर्धित करने और अनेक भाषाओं, परंपराओं और संस्कृतियों वाले व्यापक रूप से विविधतापूर्ण देश में क्षेत्रीय सहयोग बढाने संबंधी उद्देश्य के साथ गौण (लघु) भाषाओं और बोलियों सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद कार्य अकादमी के मुख्य कार्य में शामिल है। साहित्य अकादमी सभी संभव साधनों द्वारा भारतीय लोक साहित्य का संवर्धन भी करती है, जिनमें लोक साहित्य के लिए पुरस्कार देना; सम्मेलन आयोजित करना और गौण भाषाओं, बगैर लिपियों और जनजातीय बोलियों वाली भाषाओं में पुरस्कार प्रदान करना; द्वितीय परंपरा के रूप में अपनी पत्रिकाओं में लोक कथाएं प्रकाशित करना; लोक साहित्य पुस्तकों का प्रकाशन करना शामिल है और इसकी भारत के भीतर मौखिक परंपराओं के संरक्षण और संवर्धन हेतु केन्द्र भी विद्यमान हैं।
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