गोवा के चर्च और कॉन्वेंट
गोवा
गोवा के ये स्मारक, एशिया के उन देशों में जहां कैथोलिक मिशन स्थापित किए गए थे मैनुइलाइन, मैनरिस्ट और बरोक कला रूपों के प्रसार द्वारा वास्तुकला, मूर्तिकला और पेंटिंग के विकास पर 16वीं एवं 18वीं शताब्दियों में व्यापक प्रभाव डाले। ऐसा करके ये एशिया में मिशनरियों के कार्य को दर्शाते हैं।
पुर्तगाली खोजकर्ता अल्फोंसो डे अलबुकर्क ने 1510 में गोवा पर विजय प्राप्त की और पुर्तगालियों ने इस क्षेत्र पर 1961 तक शासन किया। गोवा कॉलोनी, जिसका अपना केन्द्र पुराने गोवा में है, लिस्बत शहर जैसे समान नागरिक विशेषाधिकारों को साझा करते हुए विशाल पूर्वी पुर्तगाली साम्राज्य की राजधानी बन गयी। 1635 तक यूरोपियनों की लगातार विजय ने गोवा को अनिवार्य पतन की ओर ढकेल दिया।
1542 में मध्यदयुगीन धर्मयोद्धाओं के उत्साह से प्रेरित होकर जेशुइट इस शहर में आए और फ्रांसिस जेवियर जो सोसायटी ऑफ जीसस के संस्थापकों में से एक थे, जल्द ही गोवा के संरक्षक संत बन गए। पुराने गोवा के चर्चों का उद्देश्य स्थानीय आबादी पर भय से धर्म परिवर्तन कराने और उन पर विदेशी धर्म की श्रेष्ठता का प्रभाव डालने का था। इमारत के अग्र भाग (दरवाजा) को तदनुसार लंबा और ऊँचा बनाया गया था और आंतरिक भाग टविस्टेड बर्निनि कॉलम्स , सुसज्जित पेडिमेंट्स, अधिक नक्काशी और भव्य वेदिकाओं और रंगीन दीवार पेंटिंग्स और भित्तिचित्रों से शोभायमान थी।