ताज महल
उत्तर प्रदेश
सफेद संगमरमर का विशाल मकबरा, ताज महल का निर्माण कार्य मुगल बादशाह शाहजहां के आदेश से वर्ष 1631 और 1648 के बीच आगरा में करवाया गया था। यह भारत में मुस्लिम कला का आभूषण है और विश्व विरासत की सर्वत्र प्रशंसित उत्कृष्ट कृति है। नि:संदेह यह आंशिक रूप से अपने निर्माण कार्य संबंधी मार्मिक परिस्थितियों के लिए अपनी ख्याति हेतु ऋणी है। शाहजहां ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज महल, जिनकी मृत्यु 1631 में हुई थी की याद को बनाए रखने के लिए इस अंत्येष्टि मस्जिद का निर्माण कराया था। इस स्मारक का निर्माण कार्य वर्ष 1632 में प्रारंभ हुआ और वर्ष 1648 में पूरा हुआ। असत्यापित परंतु फिर भी दृढ़ किदवंती इसके निर्माण का श्रेय बादशाह के वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी के आदेशाधीन कार्यरत राजमिस्त्रियों, संगमरमर के कारीगरों, पच्चीकारी का काम करने वालों और सज्जातकारों के हजारों कार्मिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल को देते हैं।
लगभग 17 हेक्टेयर के एक विशाल मुगल उद्यान में यमुना नदी के दक्षिण तट पर अवस्थित, यह अंत्येष्टि स्मारक चार अलग-अलग मीनारों द्वारा घिरा हुआ और फैला हुआ अष्टकोणीय बनावट है, जो उद्यान पथ अथवा जलाशय द्वारा प्रस्तुत खुले परिदृश्य के क्रिसक्रॉस डिजाइन के माध्यम से एक गोल गुम्बद द्वारा आच्छादित है। इसमें विस्मयकारी सुचित्रित पवित्रता की सही ऊँचाई की परिशुद्धता छिपी हुई है और यह लगभग मनोहर सजावट की चमक के विपरीत है, जहां सफेद संगमरमर, मुख्य इमारती सामग्री द्वारा फूल-पत्तों की बेलबूटेदार नक्काशी से तथा अलंकृत धारियां और सुलेख उत्कीर्ण जो बहुरंगी पिट्रा डूरा में जडि़त है, से इसकी और चमक और शोभा बढ़ती है। सामग्रियां पूरे भारत और मध्य एशिया से मंगवाई गयी थी और सफेद मकराना संगमरमर को जोधपुर से मंगाया गया था। कलमकारी के लिए बहुमूल्य पत्थंर बगदाद, पंजाब, मिस्र, गोलकुंडा, चीन, अफगानिस्तान, श्रीलंका, भारतीय महासागर और ईरान से लाए गए थे। इस अनुपम मुगल शैली में ईरानी, मध्य एशियाई और इस्लामी स्थापत्य कला के तत्व एवं शैलियां सम्मिलित हैं।