बोधगया में महाबोधि मंदिर परिसर

बोध गया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर

बोध गया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर

बिहार

यह महाबोधि मंदिर भारत में ईंट से बनी आरंभिक संरचनाओं के कुछ जीवित उदाहरणों में से एक है जिसने पिछली कई शताब्दियों से वास्तुकला के विकास पर महत्‍वपूर्ण प्रभाव डाला है। मौजूदा मंदिर उत्‍तर गुप्‍त काल में पूरी तरह से ईंट से निर्मित संरचनाओं में से सबसे प्राचीनतम और अत्‍यंत भव्‍य संरचनाओं में से एक है। इसके पत्‍थर के गढ़े हुए जंगले पत्‍थर की मूर्तिकला संबंधी नक्‍काशी का उत्‍कृष्‍ट प्रारंभिक उदाहरण है।

इस मंदिर परिसर का महात्‍मा बुद्ध के जीवन (566-486 ईसा पूर्व) से सीधा संबंध है क्‍योंकि यह वही स्‍थान है जहां 531 ईसा पूर्व में उन्‍होंने बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर सर्वोच्‍च और संपूर्ण अंतरज्ञान प्राप्‍त किया था। यहां उनके जीवन और तत्‍पश्‍चात उनकी पूजा से जुड़ी घटनाओं के असाधारण रिकॉर्ड उपलब्‍ध हैं, विशेषकर उस समय के जब 260 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक इस स्‍थान पर तीर्थ यात्रा पर आए थे और उन्‍होंने बोधि वृक्ष के स्‍थल पर पहले मंदिर का निर्माण करवाया था। महाबोधि मंदिर परिसर बोध गया शहर के ठीक बीचों - बीच में स्थित है। इस स्‍थल पर एक मुख्‍य मंदिर है तथा एक प्रांगण के भीतर छह पवित्र स्‍थान हैं और दक्षिण की ओर के प्रांगण के ठीक बाहर, कमल कुंड नामक एक सातवां पवित्र स्‍थान है।

सभी पवित्र स्‍थानों में से सबसे अधिक महत्‍वपूर्ण यह विशाल बोधि वृक्ष (फिकस रिलिजियोसा) है। यह वृक्ष मुख्‍य मंदिर से पश्चिम की ओर स्थित है और यह माना जाता है कि उस समय के मूल बोधि वृक्ष का ही वंशज है जिसके नीचे बुद्ध ने पहला सप्‍ताह व्‍यतीत किया था और जहां उन्‍हें ज्ञान प्राप्ति हुई थी। मध्‍य पथ की उत्‍तर दिशा में, एक उठे हुए क्षेत्र पर, अनिमेषलोचन चैत्‍य (प्रार्थना हॉल) है जहां, माना जाता है कि बुद्ध ने अपना दूसरा सप्‍ताह व्‍यतीत किया था। बुद्ध अपने तीसरे सप्‍ताह में रत्‍नचक्रमा (ज्‍यूल्‍ड एम्‍ब्‍यूलेट्री) नामक स्‍थान पर 18 कदम आगे और पीछे चले, और यह स्‍थान मुख्‍य मंदिर की उत्‍तरी दीवार के निकट है। जिस स्‍थान पर उन्‍होंने चौथा सप्‍ताह व्‍यतीत किया वह है रत्‍नघर चैत्‍य, जो प्रांगण दीवार के निकट पूर्वोत्‍तर में स्थित है। मध्‍य पथ पर पूर्वी प्रवेश द्वार की सीढि़यों के ठीक बाद एक स्‍तंभ है जहां अजापाला निग्‍रोध वृक्ष स्थित है, जिसके नीचे महात्‍मा बुद्ध ने ब्राह्मणों के प्रश्‍नों के उत्‍तर देते हुए पांचवे सप्‍ताह के दौरान मनन किया। उन्‍होंने छठा सप्‍ताह प्रांगण के दक्षिण में स्थित कमल कुंड के निकट बिताया, और सातवां सप्‍ताह राज्‍यतना वृक्ष के नीचे व्‍यतीत किया जहां अब एक वृक्ष स्थित है।

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