राजस्थान के पहाड़ी किलों

राजस्‍थान के पहाड़ी किले

राजस्‍थान के पहाड़ी किले

राजस्‍थान

राजस्‍थान राज्‍य में छ: विशाल और आलीशान पहाड़ी किले मिलकर राजपूत राजशाही राज्‍य की विस्‍तृत और सुदृढ़ शक्ति को प्रदर्शित करते हैं जो 8वीं और 18वीं शताब्दियों के बीच फला-फूला और इन्‍होंने अपनी स्‍वतंत्र राजनीतिक सत्‍ता कायम की।

20 किलोमीटर के दायरे में फैली इस विशाल किलाबंदी ने बहुत तरह के पहाड़ी क्षेत्रों खासकर गगरोन में नदी, रणथंबौर के घने जंगलों और जैसलमेर में रेगिस्‍तान का बेहतर इस्‍तेमाल किया है और ये स्‍थापित ‘’पारंपरिक भारतीय सिद्धांतों’’ पर आधारित स्‍थापत्‍य शैली के विकास में एक महत्‍वपूर्ण दौर को प्रदर्शित करते हैं। इसकी स्‍थापत्‍य शैली और साज-सज्‍जा की शब्‍दावली सल्‍तनत और मुगल स्‍थापत्‍य कला जैसी अन्‍य धार्मिक शैलियों के साथ साझी विशेषताएं रखती हैं। राजपूत स्‍थापत्‍य शैली अपने आप में ‘अनूठी’ नहीं थी लेकिन जिस तरह से राजपूत स्‍थापत्‍य कला ग्रहणशील प्रवृत्ति रखती थी (अपने पूर्ववर्तियों और पड़ोस से प्रेरणा लेने में) और जिस प्रकार से इसने क्षेत्रीय शैलियों (मराठा स्‍थापत्‍य शैली जैसी) को गहन रूप से प्रभावित किया है उस दृष्टि से यह एक बहुत खास शैली बन जाती है। राजदरबारी संस्‍कृति के केन्‍द्र और कला एवं संगीत सीखने के लिए एक संरक्षण स्‍थल के रूप में इन किलों की सुरक्षा प्रदान करने वाली दीवारों के भीतर महलों और अन्‍य भवनों की स्‍थापत्‍य शैली इनकी भूमिका को प्रदर्शित करती है। इन किलों की चारदीवारी के भीतर राजदरबार और सेना के आवास के साथ-साथ घनी शहरी बसावटें भी थी इनमें से कुछ आज भी बची हुई हैं। इनमें से कुछ किलों में व्‍यापारिक केन्‍द्र भी थे। चूंकि ये किले उत्‍पादन, वितरण और व्‍यापार के केन्‍द्र थे जो इनकी समृद्धि का आधार बने।

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