संग्रहालय और पुरावशेष

राष्‍ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, बंगलुरू

राष्‍ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय बंगलुरू माणिक्‍यवेल मेनसन, 39 पैलेस रोड बंगलुरू के परिसर में प्रकाशन के लिए 18 फरवरी, 2009 में स्‍थापित किया गया था। 3.5 एकड क्षेत्र में फैले अनुकूल विरासत विरासत भवन को 1551 वर्ग मीटर के क्षेत्र में प्रदर्शित करते हुए निवास को एक कला संग्रहालय में तब्‍दील किया गया था जिसमें 1260 वर्ग मीटर का प्रदर्शन क्षेत्र नए संग्रहालय ब्‍लॉक के रूप में जोडा गया था। अतिरिक्‍त ब्‍लॉक का स्‍थापत्‍य इस फैशन के साथ डिजाइन किया गया था कि आधुनिक संग्रहालय की अपेक्षाओं को पूरा करते हुए माणिक्‍य वेलू मेंशन विरासत की शैली और माहौल में विलय किया गया। संग्रहालय 18वीं शताब्‍दी की शुरूआत से लेकर वर्तमान समय तक के देश के सांस्‍कृतिक लोकाचार और भारतीय कला के प्रदर्शन का भंडार है।

राष्‍ट्रीय आधुनिक कला के संग्रह में मुख्‍य रूप से चित्र, मूर्तियां, ग्रफिक मुद्रण और भारत के प्रारंभिक फोटोग्राफी के उदाहरण शामिल हैं जो भारत में आधुनिक कला के ऐतिहासिक विकास को प्रदर्शित करते हैं। प्रदर्शन में भारतीय लघु चित्र, औपनिवेशिक कलाकार, बंगाल स्‍कूल और स्‍वतंत्रता पश्‍चात के कलाकार जिन्‍होंने आज की कला के आधुनिक और उत्‍तर आधुनिक सृजन का नेतृत्‍व किया। चित्रों और मूर्तियों के स्‍थायी प्रदर्शन के अतिरिक्‍त यह संग्रहालय राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय प्रदर्शिनयों का भी नियमित प्रदर्शन करता है।

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राष्‍ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, मुंबई

राष्‍ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, मुंबई (एनजीएमए), संस्‍कृति मंत्रालय, भारत सरकार का एक अधीनस्‍थ कार्यालय है। एनजीएमए मुंबई जो प्रथम श्रेणी का विरासत भवन है, का उदघाटन श्री एस आर बोमई, पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार द्वारा 23 दिसम्‍बर, 1996 को किया गया था। यह प्रसिद्ध कोवासजी जहांगीर पब्लिक हॉल (सीजे पब्लिक हॉल), एम जी रोड पर स्थित है। महाराष्‍ट्र सरकार ने इस भवन को संस्‍कृति मंत्रालय भारत सरकार को एनजीएमए की स्‍थापना करने के लिए 30 वर्षों के लिए पट्टे पर दिया है।

एनजीएमए, मुंबई में अंतरराष्‍ट्रीय प्रतिष्‍ठा के प्रख्‍यात कलाकारों के 1457 कला संग्रह हैं जिसमें पेंटिंग, मूर्तियां, चित्र और मुद्रण कार्य शामिल है।

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राष्‍ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, नई दिल्‍ली

राष्‍ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (एनजीएमए) 1954 में स्‍थापित देश में अपनी तरह का ऐसा अकेला संस्‍थान है जो पिछले 150 वर्षों से भी अधिक की दृश्‍य कलाओं के विकास और सचित्र परिवर्तन को प्रस्‍तुत करता है। एनजीएमए संस्‍कृति मंत्रालय के अधीक्षण और प्रशासनिक नियंत्रण के तहत अधीनस्‍थ कार्यालय के रूप में कार्य करता है।

Tएनजीएमए का मुख्‍य उद्देश्‍य सामान्‍य लोगों में दृश्‍य और प्‍लास्टिक कला के प्रति भारतीय जनता के बीच समझ और संवेदनशीलता सृजित करना है और विशेष रूप से समकालीन भारतीय कला के विकास को बढ़ाना है। वर्ष 2009 में एनजीएमए में नई दिल्‍ली में नए विस्‍तार स्‍कंध का उदघाटन किया गया था। जिसमें इसके प्रदर्शन क्षेत्र के 6 गुणा बढा दिया है।

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सालार जंग संग्रहालय, हैदराबाद

सालार जंग संग्रहालय, हैदराबाद विविध यूरोपीय, एशियाई और विश्‍व के सुदूर पूर्व देशों की कलात्‍मक उपलब्धियों का भंडार है। इस संग्रह का प्रमुख भाग नवाब मीर युसूफ अली खान द्वारा अधिग्रहीत किया गया था। जिन्‍हें सालार जंग-।।। के रूप में जाना जाता है। सालार जंग-।।। के निधन के पश्‍चात और कोई प्रत्‍यक्ष कानूनी वारिश न होने पर इन बहुमूल्‍य कला वस्‍तुओं और इस पुस्‍तकालय के विशाल संग्रह को सालार जंग रियासत समिति के परिवेक्षण में सालार जंग के पैतृक महल में रखा गया। पूर्व में सालार जंग का संग्रह दीवान डयोढी में रखा गया था। बाद में 1968 में 10.62 माप के क्षेत्र में नए भवन का निर्माण किया गया और संग्रह और पुस्‍तकालय को नए स्‍थान पर स्‍थानांतरित किया गया था।

1961 में संसद के अधिनियम (1961 की संख्‍या 26), द्वारा इसके पुस्‍तकालय के साथ सालार जंग संग्रहालय राष्‍ट्रीय महत्‍व का संग्रहालय घोषित किया गया था और इसका प्रशासनिक नियंत्रण एक सांविधिक निकाय को सौंपा गया था जिसके भारत सरकार और राज्‍य सरकार के 10 प्रतिनिधि सदस्‍यों के साथ पदेन अध्‍यक्ष आंध्र प्रदेश के राज्‍यपाल हैं। तदनुसार, संग्रहालय के कार्य का प्रबंधन सालार जंग संग्रहालय बोर्ड द्वारा किया जा रहा है।

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विक्‍टोरिया मेमोरियल हॉल, कोलकाता

विक्‍टोरिया मेमोरियल हॉल (वीएमएच), की स्‍थापना लॉर्ड कर्जन की पहल पर इंडो-ब्रिटिश इतिहास पर विशेष जोर देने के साथ क्‍वीन विक्‍टोरिया की याद में काल विशेष संग्रहालय के रूप में की गई थी। यह 57 एकड़ भूमि पर निर्मित है और इसे ‘राज का ताज’ कहा जाता है क्‍योंकि भारत में इंडो-ब्रिटिश स्‍थापत्‍य कला के सर्वोत्‍तम नमूने के रूप में मान्‍यता प्राप्‍त वीएमएच को 1921 में आम जन के लिए खोला गया था और 1935 के भारत सरकार के अधिनियम द्वारा इसे राष्‍ट्रीय महत्‍व का संस्‍थान घोषित किया गया था। वर्तमान में वीएमएच भारत में सर्वाधिक लोगों द्वारा देखे जाने वाले संग्रहालय के रूप में जाना जाता है। वर्ष 2013-14 में इसकी वीथियों का लगभग 20 लाख लोगों ने और बगीचे का अलग से 13 लाख से अधिक लोगों ने दौरा किया।

वीएमएच संग्रह के पास नौ दीर्घाओं में प्रदर्शित 28,394 कलाकृतियां हैं जो 1650 एडी से शुरू तीन से अधिक शताब्दियों व्‍याप्‍त हमारे देश की संस्‍कृति को दर्शाता है।

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राष्‍ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद (एनसीएसएम)

राष्‍ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद (एनसीएसएम) संस्‍कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्‍वायत्‍त संगठन है जिसे विज्ञान संग्रहालयों के मौजूदा और आगामी दोनों गतिविधियों के आकलन करने हेतु 1970 के प्रारंभ में संघ योजना आयोग द्वारा गठित कार्यदल सिफारिश पर दिनांक 4 अप्रैल, 2014 को एक सोसाइटी के रूप में पंजीकृत किया गया था। कार्यदल ने राष्‍ट्रीय, राज्‍य और जिला स्‍तर पर देश के विभिन्‍न भागों में विज्ञान संग्रहालय / केन्‍द्र गठित करने के लिए सिफारिश की है। वर्तमान में एनसीएसएम देश भर में फैले 25 विज्ञान संग्रहालय / केन्‍द्रों का प्रशासन और प्रबंधन करता है और यह विश्‍व में विज्ञान केन्‍द्र और संग्रहालय का सबसे बड़ा नेटवर्क है जो एक प्रशासनिक छत्र के अधीन कार्य करता है। पिछले 35 वर्षों में परिषद ने 48 विज्ञान संग्रहालय के राष्‍ट्रव्‍यापी बुनियादी ढांचे का विकास किया है। एनसीएसएम एक सोसाइटी द्वारा प्रबंधित है जिसके अध्‍यक्ष माननीय संस्‍कृति मंत्री है। यहां पदेन सदस्‍य और विशेषज्ञ सहित एक शासी निकाय भी हैं । वर्तमान शासी निकाय के अध्‍यक्ष प्रो.आर सी सोबती है।

परिषद, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर जागरूकता पैदा करने, समाज में वैज्ञानिक सोच का विकास करने और देश के चारों ओर विज्ञान साक्षरता को बढावा देने में कार्यरत है। इसकी आउटरीच गतिविधियां वर्ष भर में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों को शामिल कर विज्ञान संस्‍कृति और नवाचार को विकसित करने की आकांक्षा रखता है।

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इलाहाबाद संग्रहालय, इलाहाबाद

इलाहाबाद संग्रहालय की स्‍थापना 1931 में इलाहाबाद नगरपालिका परिषद के तत्‍वावधान में की गई थी। श्री बृज मोहन व्‍यास, नगरपालिका के कार्यकारी अधिकारी ने कौशाम्‍बी, भरहट और भुमार से मूर्तियां, टेराकोटा और मोती आदि का विशाल संग्रह बनाया है। वर्ष 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्‍यक्ष ने संग्रहालय संग्रह को समृद्ध बनाने के लिए आज़ादी की लडाई के उसके परिवार के अधिकांश स्‍मृतिचिह्न भी उपहार स्‍वरूप दिए थे। अनागारिक गोविन्‍द, जर्मन मूल एक बौद्ध सन्‍यासी ने भी अपने अधिकांश पेटिंग्‍स और स्‍केच उपहार स्‍वरूप दिया था। समुदाय के लिए इसकी उपयोगिता और सेवा को पहचानते हुए उन्‍होंने आजादी के बाद दिनांक 14 दिसंबर 1947 को अलफ्रेड पार्क में स्थित (अब चन्‍द्रशेखर आज़ाद पार्क में) मौजूदा भवन का शिलान्‍यास किया था और वर्ष 1953-54 में संग्रहालय को उसके नए भवन में स्‍थानांतरित किया है।

तथापि, इलाहाबाद नगरपालिका के तहत निधियों की कमी के कारण संग्रहालय का विकास रूक गया है। यह सितंबर 1985 में संस्‍कृति विभाग, भारत सरकार द्वारा राष्‍ट्रीय महत्‍व वाला संस्‍थान घोषित किया गया था। संग्रहालय के गतिविधियों का प्रबंधन करने के लिए दिनांक 6 सितंबर 1985 को सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के अंतर्गत एक 'सोसाइटी' का पुनर्गठन हुआ। अब यह भारत सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्‍तपोषित और नियंत्रित है। संस्‍कृति मंत्रालय ने दिनांक 18 अगस्‍त 2008 को सोसाइटी को पुनर्गठित किया है और तब से उत्‍तर प्रदेश के माननीय राज्‍यपाल इलाहाबाद संग्रहालय सोसाइटी के पदेन अध्‍यक्ष हैं।

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राष्‍ट्रीय सांस्‍कृतिक सम्‍पदा संरक्षण अनुसंधान प्रयोगशाला, लखनऊ

राष्‍ट्रीय सांस्‍कृतिक सम्‍पदा संरक्षण अनुसंधान प्रयोगशाला लखनऊ, संस्‍कृति मंत्रालय, भारत सरकार का एक अधीनस्‍थ कार्यालय है और इसकी स्‍थापना वर्ष 1976 में की गई थी। वर्ष 1985 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा एक वैज्ञानिक संस्‍थान के रूप में इसको मान्‍यता प्राप्‍त हुई है। प्रयोगशाला के लक्ष्‍य और उद्देश्‍य निम्‍नांकित हैं।

  • वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रशिक्षण द्वारा संरक्षण क्षमताओं का विकास करना।
  • क्षेत्र परियोजना के विकास और कार्यान्‍वयन द्वारा संरक्षण प्रथाओं को बढ़ावा देना
  • सम्‍मेलन, कार्यशाला और प्रकाशन के द्वारा सूचना का प्रसार करना
  • संरक्षण प्रयोगशाला की स्‍थापना करना
  • अंतरराष्‍ट्रीय पेशेवर संगठनों के साथ सहयोग करना

सरंक्षण और परिरक्षण हेतु एनआरलसी की गतिविधियां वैज्ञानिक अनुसंधान, प्रशिक्षण और क्षेत्र परियोजना द्वारा पूरे किए गए हैं। पिछले कुछ वर्षों में इस प्रयोगशाला ने राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति के पत्रिकाओं में अनेक शोध लेखों का प्रकाशन किया है। वर्ष 2011 में क्षेत्र परियोजना हेतु जमाशीर्ष की संस्‍वीकृति के साथ प्रयोगशाला को विभिन्‍न संग्रहालय, अभिलेखागार, पुस्‍तकालय और अन्‍य संस्‍थानों से संरक्षण कार्य के लिए अनुरोध प्राप्‍त हुआ है। वर्तमान में एनआरएलसी की क्षेत्र परियोजनाएं सर जे जे स्‍कूल ऑफ आर्टस, मुंबई, केन्‍द्रीय संग्रहालय नागपुर, एसएमएम थिएटर क्राफ्ट म्‍यूजियम, नई दिल्‍ली, श्री मंजूषा संग्रहालय, धर्मस्‍थला, मैसूर पेलस बोर्ड मैसूर, राज्‍य संग्रहालय और जू तिरूअनंतपुरम, क्षेत्रीय राज्‍य अभिलेखागार, एरनाकुलम और गवर्नर हाउस, लखनऊ में प्रगति पर है।

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राष्‍ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्‍ली

राष्‍ट्रीयसंग्रहालय,संस्‍कृति मंत्रालय, भारत सरकार का एक अधीनस्‍थ कार्यालय है, जिसकी स्‍थापना वर्ष 1949 में की गई थी। संग्रहालय के पास 2 लाख से अधिक कलाकृतियां हैं। राष्‍ट्रीय संग्रहालय के मुख्‍य उद्देश्‍य निम्‍नांकित हैं :

  • ऐतिहासिक सांस्‍कृतिक और कलात्‍मक महत्‍व के पुरावशेष और कलाकृतियों को उनकी सुरक्षा और व्‍याख्‍या के उद्देश्‍य हेतु संग्रहीत करना।
  • इतिहास, संस्‍कृति और कलात्‍मक उत्‍कृष्‍टता और उपलब्धियों के संबंध में कलाकृतियों के महत्‍व पर ज्ञान प्रसार करना।
  • कलात्‍मक और सांस्‍कृतिक गतिविधियों में लोगों को आनंद प्रदान करने और विचार विमर्श हेतु एक सांस्‍कृतिक केन्‍द्र के रूप में सेवाएं प्रदान करना
  • राष्‍ट्रीय पहचान की प्रतीक के रूप में कार्य करना ।

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राष्‍ट्रीय संग्रहालय संस्‍थान : कला इतिहास संग्रहालय विज्ञान, नई दिल्‍ली

राष्‍ट्रीय संग्रहालय संस्‍थान (एनएमआई) संस्‍कृति मंत्रालय द्वारा पूर्ण रूप से वित्‍तपोषित एक स्‍वायत्‍त संगठन है जिसकी स्‍थापना जनवरी 1989 में एक सोसाइटी के रूप में की गई थी तथा इसे 1989 में सम-विश्‍वविद्यालय घोषित किया गया था। वर्तमान में यह राष्‍ट्रीय संग्रहालय, जनपथ, नई दिल्‍ली के परिसर में कार्य कर रहा है। इसके संगम ज्ञापन के अनुसार माननीय संस्‍कृति मंत्री सोसाइटी के अध्‍यक्ष है और विश्‍वविद्यालय के कुलाधिपति भी है। महा निदेशक, राष्‍ट्रीय संग्रहालय, संस्‍थान का पदेन कुलपति है। संस्‍थान के मुख्‍य उद्देश्‍य निम्‍नांकित हैं

  • कला इतिहास, संरक्षण और संग्रहालय विज्ञान के विभिन्‍न क्षेत्रों में अध्‍ययन प्रशिक्षण और अनुसंधान के पाठ्यक्रम उपलब्‍ध कराना।
  • उपरोक्‍त अध्‍ययन क्षेत्रों में मौलिक अनुसंधान हेतु सुविधाएं उपलब्‍ध कराना।
  • सामग्री, क्‍यूरटोरियल / तकनीकी निपुणता और सुविधाएं शेयर करने के उद्देश्‍य से सांस्‍कृतिक संपदा वाले अन्‍य राष्‍ट्रीय संस्‍थानों के साथ सहयोग करना।
  • उपरोक्‍त क्षेत्रों में शिक्षण मानकों के सुधार के लिए राष्‍ट्रीय स्‍तर में सतत आधार पर परस्‍पर प्रभाव डालना।

उपरोक्‍त उद्देश्‍यों के अनुसरण में एनएमआई, कला इतिहास, संरक्षण और संग्रहालय विज्ञान में एमए और पीएचडी पाठ्यक्रम प्रदान करता है; भारत : कला एवं संस्‍कृति और अंग्रेजी में कला अभिमूल्‍यन और हिन्‍दी में भारतीय कलानिधि नाम से तीन महीने की प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम (अल्‍पकालीन पाठ्यक्रम) संचालित करता है ; राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय सेमिनार, कार्यशाला और विचारगोष्‍ठी आयोजित करता है ; प्रासंगिक विषयों पर प्रख्‍यात विद्वानों के विशेष भाषण की व्‍यवस्‍था करता है ; और अपनी कृतियों का प्रकाशन करता है। एनएमआई का 10वां दीक्षान्‍त समारोह दिनांक 3 जून, 2013 को आयोजित किया गया था। माननीय संस्‍कृति मंत्री द्वारा सफल एम/ पीएचडी छात्रों को डिग्रियां प्रदान की गयीं तथा माननीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री मुख्‍य अतिथि सफल।

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भारतीय संग्रहालय, कोलकाता

इसकी स्थापना एशियाटिक सोसाइटी के उद्गम स्‍थान में 2 फरवरी, 1814 को की गई थी । यह एशिया प्रशांत क्षेत्र में आरंभिक संग्रहालय है, जो अपने सफल अस्‍तित्‍व के बहु-रेखीय चरणों से गुजरा है। ऐसी समग्र पुरा वस्‍तुओं के लिए किसी संग्रहालय स्‍थापित करने संबंधी अवधारणा डॉ. नैथनील वैलिच, एक डेनिश वनस्‍पति शास्‍त्री का मौलिक विचार था। भारतीय संग्रहालय, जिसे पहले एशियाटिक संग्रहालय के नाम से और तदुपरांत इंपीरियल म्‍यूजियम के रूप में जाना था, मानव सभ्‍यता के एक प्रतीक के रूप में देश में अपने प्रकार के सबसे वृहद संस्‍थान के रूप में विकसित हुआ। इस संग्रहालय के वास्‍तुकार डब्‍ल्‍यू.एल. ग्रैनविले थे और इस वर्तमान विक्‍टोरियन इमारत को वर्ष 1875 में पूरा किया गया था और 1 अप्रैल, 1878 को यह संग्रहालय जनता के लिए खोल दिया गया।

इस संग्रहालय का उद्देश्‍य, राष्‍ट्रीय महत्‍व की सभी पुरावस्‍तुओं का अर्जन, संरक्षण और अध्‍ययन करने के साथ-साथ इनके माध्‍यम से ज्ञान का प्रसार करना तथा मनोरंजन करना है। इसके संग्रह की मुख्‍य विशेषताओं में प्राच्‍य संस्‍कृति, इतिहास और प्राकृतिक विज्ञान के साथ-साथ अन्‍य देशों के भी कुछ नमूने शामिल हैं।

लगभग एक मिलियन होल्‍डिंगस के साथ इसके 6 खंडों अर्थात् कला, पुरातत्‍व, मानव-विज्ञान, प्राणी-विज्ञान, भू-विज्ञान और प्राणी-विज्ञान से युक्‍त लगभग 8 हजार वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले अनेक वीथियों में प्रदर्शित कला और प्रकृति की असंख्‍य पुरा वस्‍तुओं और विशाल विविधता के साथ, भारतीय संग्रहालय को इसके बहु-विषयक कार्यकलापों के साथ भारतीय गणतंत्र की संविधान में एक महत्‍वपूर्ण राष्‍ट्रीय संस्‍थान के रूप में समाहित किया गया है।

पुरातत्‍व खंड में 5वीं ई.पू. से 17वीं शताब्‍दी तक के संग्रह शामिल हैं। प्राचीन, मध्‍यकालीन और आधुनिक युग के भारतीय सिक्‍के भी प्रदर्शित किए गए हैं। कला खंड को चित्रकला, वस्‍त्र और भारतीय सज्‍जा कला खंड में विभक्‍त किया गया है। मानव विज्ञान खंड में मानव विकास और सांस्‍कृतिक मानव विज्ञान वीथियां शामिल हैं, जिनमें मत्‍स्‍य, सरीसृप, पक्षी, स्‍तनधारी, जीवाश्‍म, शिला एवं खनिज और औषधीय पादप, वनस्‍पति तंतु, रंजक एवं चर्म, गोंद तथा राल, काष्‍ठ, तैल तथा तैल बीज संग्रह प्रदर्शित की गई हैं।

अधिक जानकारी के लिए कृपया indianmuseumkolkata.org external link देखें।

  • National Culture Fund
  • http://india.gov.in/
  • http://www.incredibleindia.org/
  • http://ngo.india.gov.in/
  • http://nmi.nic.in/
  • https://mygov.in